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कोरोना...गजल


माना कि दूर हो तो जिगर में रहो सनम |
इक-दूसरे के हाल फिकर में रहो सनम |

भूले से भी मिलन की अभी बात ना करो, 
हम गाँव रहें आप शहर में रहो सनम |

खुद ही चलो लगाते हैं पाँवों में बेड़ियां,
अब सिर्फ खयालों के सफर में रहो सनम |

सच है तुम्हारे लफ्ज़ गज़ल से नही हैं कम, 
फिर भी है जरूरी कि बहर में रहो सनम |

कहते हैं कोरोना का कोई तोड़ नही है, 
बचने की एक राह है घर में रहो सनम |
             सन्तोष शुक्ल समर्थ 
            अध्यक्ष काव्य कुटुंब
                    प्रयागराज

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