युवा समाजसेवी प्रदीप शुक्ल के साथ सिपाही द्वारा की गयी अभद्रता से लोगों में रोष
समाजसेवियों, नेताओं व पत्रकारों ने की निंदा, सिपाही के विरूद्ध कार्रवाई की मांग
ए. आर. उस्मानी
गोण्डा। धानेपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत लाली पोखरा निवासी हरिराम जायसवाल की मानसिक रूप से विक्षिप्त लड़की और उसके भाई अमित कुमार के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ, तो अमित की बहन ने 112 पर कॉल करके पुलिस को बुला लिया और दोनों को पुलिस थाने पर ले आई, जहां पिता हरिराम के समझाने बुझाने पर दोनों ने सुलह समझौता कर लिया।
उसके बाद लड़की चली गयी, लेकिन अमित कुमार से लाभ लेने के लिए पुलिस ने थाने में बैठाए रखा। इसकी सूचना हरिराम जायसवाल द्वारा दी गयी जिस पर समाजसेवी प्रदीप शुक्ल थाने पहुंचे और उन्होंने बैरक के बाहर बैठे अमित कुमार से बातचीत करने का प्रयास किया। आरोप है कि इस पर सिपाही अरविन्द कुमार यादव ने उनसे अभद्रता करते हुए धक्का देकर थाने से बाहर चले की जाने की हिदायत दी। सिपाही के इस व्यवहार से क्षुब्ध समाजसेवी ने थानाध्यक्ष सन्तोष कुमार तिवारी को पूरे मामले से अवगत कराया। इससे पहले की थानाध्यक्ष कोई दिशा निर्देश देते, पैसे मांगें जाने पर समाजसेवी का हस्तक्षेप और उनसे की गयी अभद्रता पर पर्दा डालने के लिए तुरन्त सुलहनामे पर हस्ताक्षर कराकर अभिरक्षा में लिए गए अमित कुमार को आनन-फानन में छोड़ दिया गया।
तेज तर्रार युवा समाजसेवी प्रदीप कुमार शुक्ल के साथ सिपाही द्वारा किए गए अभद्रतापूर्ण व्यवहार की समाजसेवियों, नेताओं तथा पत्रकारों ने कड़े शब्दों में निंदा करते हुए आरोपी सिपाही के विरूद्ध कार्यवाही की मांग की है।
बयान :प्रदीप शुक्ल
वरिष्ठ पत्रकार ए. आर. उस्मानी, विष्णुदत्त सिंह विशेन, एनके मौर्य, रविन्द्र कुमार मौर्य, सुरेश कुमार तिवारी, शराब एक्टीविस्ट मोहिनी आजाद, पत्रकार मोहम्मद इमरान, सपा नेता प्रदीप सिंह, भाजपा के संदीप कुमार शुक्ल, रमेश सिंह, दिनेश तिवारी, कांग्रेस के सत्यभान सिंह आदि ने वरिष्ठ समाजसेवी श्री शुक्ल के साथ की गई अभद्रता तथा सिपाहियों की कार्यशैली एवं आरोपों की जांच कराकर उचित कार्रवाई की मांग पुलिस अधीक्षक से की है।
आरोप निराधार : सिपाही अरविन्द कुमार
सिपाही अरविंद कुमार का कहना है कि मुल्ज़िम की रखवाली के लिए मुझे तैनात किया गया है और प्रदीप शुक्ल बिना मेरी इजाजत के मुलजिम से बात करने का प्रयास कर रहे थे। इसलिए ऐसा करने से उन्हें रोका गया था। अन्य आरोप निराधार हैं।
वहीं सूत्र बताते हैं कि सत्यता इससे विपरीत है। सत्य यह है कि जिस समय प्रदीप शुक्ल अमित कुमार से बात करने गए थे, उससे घण्टों पहले दोनों पक्षों में सुलह समझौता हो चुका था। फिर भी उसे मुलजिम की तरह अभिरक्षा में बैठाए रखने का आशय शोषण नहीं तो और क्या था? सवाल यह उठता है कि यह सब जानने के लिए उससे बात करने के प्रयास में अभद्रता किया जाना सरल-सुलभ न्याय व्यवस्था के विपरीत है?
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ