दुर्गा सिंह पटेल/सुनील कुमार गौड़
मसकनवा (गोंडा):महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय त्रिलोक चन्द्र नेपाली उर्फ पहाड़ी बाबा आज भी उनके प्रति लोगों की आस्था है। उनकी पुण्य तिथि प्रति वर्ष सात नवम्बर को उनके समाधि स्थल मसकनवा कस्बे में धूमधाम से मनायी जाती है। भारत की स्वतंत्रता आंदोलन में नेपाल राज्य का बड़ा ही योगदान रहा है। वहां के रण बांकुरो ने भी जेल की यातनाएं सही। वहां के के नागरिकों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्रता संग्राम में बढ चढ़ कर हिस्सा लिया। उनमें से एक त्रिलोक चन्द्र ब्रम्हचारी उर्फ पहाड़ी बाबा का विशेष स्थान है। उनका जन्म 3 नवम्बर सन 1880 में नेपाल राज्य में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित परमात्मा दीन था। स्वतंत्रता भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के बाद अनेक लोग शयल नेपाल वापस चले गए। परन्तु पहाड़ी को भारत की भूमि से इतना लगाव व प्यार हो गया कि उन्होंने मसकनवा में ही रह गये। बाबा आजीवन ब्रम्हचारी रहे उन्होंने अपना जीवन समाज सेवा व देश सेवा में लगाने का संकल्प लिया। अपने अनेक शिष्यों के साथ वे अपने निवास पर देश भक्ति के गीतों का पाठ कराते एवं आंदोलन चलाने में सहयोग और मार्गदर्शन करते। उनके अनन्य सहयोगी बाबू उमा शंकर गुप्त गंगा प्रसाद गुप्ता गया प्रसाद पाण्डेय चन्द्र नारायण वैध ने आंदोलन के दौरान सत्याग्रह कर जेल में अनेक यातनाएं सही।
बाबा को 1941में सत्याग्रह आंदोलन में दस माह का सश्रम कारावास एवं भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में छ:माह की सजा अंग्रेजी शासन ने दी। उन्होंने गोंडा जिला कारागार में अनेक यातनाएं सही। बाबा ने मसकनवा से कुछ दूर तिन्हिवा घाट जंगल में अपना आश्रम बनाया वही से आंदोलन का संचालन करते रहे। आजादी के बाद बच्चों को पढ़ाने के साथ असाध्य रोगों की जड़ी बूटियों से निर्मित दवायें भी देते थे। इससे जनमानस में उनकी छवि आदर्श थी।
कस्बा के जे पी गुप्ता और परमात्मा प्रसाद बताते हैं कि उन्हे अपने मृत्यु का ज्ञान स्वंय हो गया था इसलिए उन्होंने अपने मृत्यु से कुछ दिन पहले ही अपने शिष्यों से मिलना बंद कर दिया था। जब 7नवम्बर 1978 को कुटी को खोला गया तो हाथ में गीता की पुस्तक लिए ब्रम्हलीन हो चुके थे। उनके इच्छानुसार उनके आवास पर उनकी समाधि स्थली बना दी गयी। तब से 7 नवम्बर को उनकी पुण्य तिथि मनायी जाती।
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