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श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन कथावाचक श्रीकृष्ण जन्म का वर्णन


अमरजीत सिंह 
अयोध्या ।मुमारिच नगर में चल रही सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन कथावाचक पं.श्रवण कुमार मिश्र ने श्रीकृष्ण जन्म कथा का बडा रोचक वर्णन किया।बताया कि द्वापर युग में पृथ्वी पर राक्षसो के अत्याचार बढने लगे पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपनी कथा सुनाने के लिए तथा उद्धार के लिए ब्रह्मा जी के पास गई।पृथ्वी पर पाप कर्म बहुत बढ़ गए यह देखकर   सभी देवता भी बहुत चिंतित थे । ब्रह्मा जी  सब देवताओ को साथ लेकर पृथ्वी को  भगवान विष्णु के पास क्षीर सागर ले गए। उस समय भगवान विष्णु अन्नत शैया पर शयन कर रहे थे। स्तुति करने पर भगवान की निद्रा भंग हो गई भगवान ने ब्रह्मा जी एवं सब देवताओ को देखकर उनके आने का कारण पूछा तो पृथ्वी बोली-भगवान मैं पाप के बोझ से दबी जा रही हूँ। मेरा उद्धार किजिए। यह सुनकर भगवान  विष्णु उन्हें आश्वस्त करते हुए बोले चिंता न करें मैं नर-अवतार लेकर पृथ्वी पर आऊंगा और इसे पापों से मुक्ति प्रदान करूंगा। मेरे अवतार लेने से पहले कश्यप मुनि मथुरा के यदुकुल में जन्म लेकर वसुदेव नाम से प्रसिद्ध होंगे। मैं ब्रज मण्डल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से कृष्ण के रूप में जन्म लूँगा और उनकी दूसरी पत्नी के गर्भ से मेरी सवारी शेषनाग बलराम के रूप में उत्पन्न होंगे । तुम सब देवतागण ब्रज भूमि में जाकर यादव वंश में अपना शरीर धारण कर लो। कुरुक्षेत्र के मैदान में मैं पापी क्षत्रियों का संहार कर पृथ्वी को पापों से भारमुक्त करूंगा। इतना कहकर अन्तर्ध्यान हो गए । इसके पश्चात् देवता ब्रज मण्डल में आकर यदुकुल में नन्द यशोदा तथा गोप गोपियो के रूप में पैदा हुए ।वह समय भी जल्द ही आ गया। द्वापर युग के अन्त में मथुरा में ययाति वंश के राजा उग्रसेन राज्य करता था।  राजा उग्रसेन के पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र कंस था। देवकी का जन्म उन्हीं के यहां हुआ। इस तरह देवकी का जन्म कंस की चचेरी बहन के रूप में हुआ। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वंय राजा बन गया  इधर कश्यप ऋषि का जन्म राजा शूरसेन के पुत्र वसुदेव के रूप में हुआ। कालांतर में देवकी का विवाह यादव कुल में वसुदेव के साथ संपन्न हुआ।
कंस देवकी से बहुत स्नेह करता था। पर जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई कि हे कंस जिस देवकी को तु बडे प्रेम से विदा करने कर रहा है उसका आँठवा पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने को उद्धत  हो गया। उसने सोचा- ने देवकी होगी न उसका पुत्र होगा ।इस घटना से चारों तरफ हाहाकार मच गया। अनेक योद्धा वसुदेव का साथ देने के लिए तैयार हो गए। पर वसुदेव युद्ध नहीं चाहते थे। वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हे देवकी से तो कोई भय नही है देवकी की आठवी सन्तान में तुम्हे सौप दूँगा। तुम्हारे समझ मे जो आये उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना उनके समझाने पर कंस का गुस्सा शांत हो गया । वसुदेव झूठ नहीं बोलते थे। कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली  पर उसने वसुदेव और देवकी को कारागार में बन्द कर दिया और सख्त पहरा लगवा दिया।तत्काल नारदजी वहाँ पहुँचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चला कि आठवाँ गर्भ कौन सा होगा गिनती प्रथम से या अन्तिम गर्भ से शुरू होगा कंस ने नादरजी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालको को मारने का निश्चय कर लिया । जैसे ही देवकी ने प्रथम पुत्र को जन्म दिया वसुदेव ने उसे कंस के हवाले कर दिया। कंस ने उसे चट्टान पर पटक कर मार डाला। इस प्रकार एक-एक करके कंस ने देवकी के सात बालको को निर्दयता पूर्वक मार डाला । भाद्र पद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ उनके जन्म लेते ही जेल ही कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा, एव पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा,अब मै बालक का रूप धारण करता हूँ तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौप दो । तत्काल वासुदेव जी की हथकडियाँ खुल गई । दरवाजे अपने आप खुल गये पहरेदार सो गये वासुदेव कृष्ण को सूप में रखकर गोकुल को चल दिए रास्ते में यमुना श्रीकृष्ण के चरणो को स्पर्श करने के लिए बढने लगी भगवान ने अपने पैर लटका दिए चरण छूने के बाद यमुना घट गई वासुदेव यमुना पार कर गोकुल में नन्द के यहाँ गये बालक कृष्ण को यशोदाजी की बगल मे सुंलाकर कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गए। जेल के दरवाजे पूर्ववत् बन्द हो गये। वासुदेव जी के हाथो में हथकडियाँ पड गई, पहरेदारजाग गये कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गई। कंस ने कारागार मे जाकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा परन्तु वह कंस के हाथो से छूटकर आकाश में उड गई और देवी का रूप धारण का बोली हे कंस मुझे मारने से क्या लाभ?तेरा शत्रु तो  गोकुल में पहुच चुका है। इस प्रकार श्री कृष्ण जन्म की कथा का समापन हुआ ।कथा के दौरान आयोजक धर्मयज्ञ मिश्र, दीपनारायण मिश्र,दिलीप नारायन,रामनारायन, रमेश मिश्र आदि मौजूद रहे।

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