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ट्रस्ट फॉर द ब्लाइंड छात्रों ने अनूठे तरीके किया सुंदरकांड, भजन कीर्तन का धार्मिक अनुष्ठान


अनीता गुलेरिया ।
दिल्मली :महरौली से प्रोगेसिव ट्रस्ट फॉर द ब्लाइंड एसोसिएशन अध्यक्ष देवेंद्र सिंह व प्रमोद कुमार द्वारा सुंदरकांड जैसे धार्मिक अनुष्ठान का भव्य आयोजन किया गया ।

 दृष्टिबाधित-छात्रों ने ब्रेल-लिपि से सुंदरकांड पढ़ते हुए अपनी मधुर-आवाज में भजन-कीर्तन द्वारा सबको मंत्रमुग्ध किया । इस आयोजन की मुख्य-अतिथि के रूप में महरौली निगम पार्षद आरती सिंह यादव जो कमेटी चेयरमैन है, आयोजन में शिरकत की । उन्होंने मीडिया-समक्ष अति सुंदर तरीके से हुए इस धार्मिक कार्यक्रम की भरपूर-प्रशंसा करते हुए कहा, मेरे पास जब यह आमंत्रण आया, तो मैं बहुत अचंभित थी, कि दृष्टिबाधित सुंदरकांड का पाठ कैसे कर कर सकते हैं ।
वीडियो 

 लेकिन यहां आकर मैंने देखा, यह दिव्य ज्योति-पारदर्शी लोग अपने मन की अतिसुंदर-दृष्टि से हम आंखों वाले लोगों से कई गुना हजार हर कार्यशैली में पूर्ण रुप से संपन्न व अग्रित हैं । हम सब का यह दायित्व बनता है, आर्थिक व कई तरीकों से इनका सहयोगी बनते हुए, इन्हें पंगु, बेचारा,असहाय,अंधा निर्बल शब्दों से कमजोर ना करके इनको सबल बनाते हुए, समानता-अधिकार तहत राष्ट्र के हर कार्य में योगदान देने हेतु बनाएं । यह हमारे समाज का अभिन्न अंग है ,मुख्य अंग को अलग करके हम और हमारा देश कभी भी संपूर्ण रूप से विकसित तो क्या,स्थाई रूप से खड़े भी नहीं हो सकते । संस्था  अध्यक्ष देवेंद्र अनुसार हमारी संस्था में ज्यादातर छात्र हैं, जो हर कार्य में निपुण है, हम इन कार्यक्रमों के माध्यम से उनकी प्रतिभा को उभारते हुए, अग्रसारित करने के लिए प्रयासरत हैं । इसके लिए हमें समाज के सहयोग की अत्यंत आवश्यकता है । उपाध्यक्ष प्रमोद कुमार ने कहा पिछले वर्ष अंध-महाविद्यालय से इन छात्रों को अकारण ही दिल्ली सरकार द्वारा बाहर निकाल दिया गया था और हमारे यह दृष्टिबाधित-छात्र रोड पर भटक रहे थे,तब हम इनको अपने ट्रस्ट में लेकर आए । लेकिन मेरी सरकार से यह मांग है,यदि वृद्धाश्रम,अनाथ-आश्रम बन सकते हैं,तो दिव्यांग-आश्रम क्यों नहीं बन सकता ? जरूरी तो नहीं, कि हर दृष्टिबाधित नौकरी करके पैरों पर खड़ा हो जाएगा, हम चाहते हैं दिल्ली सरकार दिव्यांग-दृष्टिबाधितो के रहने की स्थाई-व्यवस्था करते हुए इन आश्रमों में कई तरह के सेंटर खोलकर बेरोजगार दृष्टि बाधितो को स्वंय-रोजगार हेतु बनाते हुए असहाय से सहाय बनाए । उन्हें किसी ना किसी माध्यम से आगे बढ़ाया जाए । इस धार्मिक-अनुष्ठान का अंतिम-चरण भंडारे के साथ संपन्न हुआ । विकलांगता कोई अभिशाप नहीं है,यह किसी भी इंसान को कभी भी,किसी भी उम्र में हो सकती है, शरीर में एक अंग की कमी होने से कोई इंसान कमजोर नही हो जाता ।
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