वासुदेव यादव
अयोध्या। श्री राम मंदिर निर्माण की मंगल कामना हेतु चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कथाव्यास राधेश्याम शास्त्री ने भक्तों को बताया कि ध्रुव को ध्रुवत्व की यदि प्राप्ति हुई, तो उनकी अपनी तपस्या थी। आगे बताये की आज़कल दुनिया में दो तरह के दुष्ट हैं। एक,वो जो दूसरों को सताते हैं और एक, वो जो अपने को सताते हैं। पहले तरह के दुष्ट उतने खतरनाक नहीं हैं।
क्योंकि दूसरा कम से कम अपनी रक्षा तो कर सकता है।
दूसरे प्रकार के दुष्ट बहुत खतरनाक हैं, न तो अपने वर्तमान का ध्यान रखते है और न ही भविष्य का।कोई रक्षा करने वाला भी नहीं है।
सुप्रसिद्ध कथाव्यास राधेश्याम शास्त्री ने भक्तो को आगे बताया कि जो सात्विक है, वह उपवास कुछ पाने के लिए नहीं कर रहा है, जिसको उपवास से आनंद मिल रहा है। जिसका उपवास परमात्मा के निकट होने की सिर्फ एक दशा है।उपवास का अर्थ है, उसके पास होना, आत्मा के पास होना या परमात्मा के पास होना। लेकिन जब सात्विक व्यक्ति उसके निकट होता है, तो शरीर को भूल जाता है। कुछ घड़ियों के लिए न भूख लगती है, न प्यास लगती है। भीतर ऐसी धुन बजने लगती है। जैसे तुम भी कभी—कभी नृत्य देखने बैठे हो, कोई सुंदर नर्तक नाच रहा है; या कोई गीत गा रहा है, और गीत ऐसा प्यारा है कि धुन बंध गई, तारी लग गई; तो तीन घंटे तुम्हें न भूख लगती है, न प्यास लगती है। तुम सब भूल ही जाते हो। जब संगीत बंद होता है, अचानक तुम्हें पता चलता है कि पेट में तो हाहाकार मचा है, भूख लगी है, कंठ सूख रहा है। इतनी देर तक पता क्यों न चला! ध्यान लीन था।
सात्विक व्यक्ति का उपवास ऐसा है कि उसका ध्यान इतना भीतर परमात्मा में लीन होता है कि वह भूल ही जाता है, प्यास लगी है, भूख लगी है। जब लौटता है अपने ध्यान से, तब भूख और प्यास का पता चलता है। इसलिए उसका नाम उपवास है, परमात्मा के निकट वास।
इससे पूर्व यजमानों व भक्तों के व्यासपीठ की आरती उतारी। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीरामजन्मभूमि न्यास अध्यक्ष महन्त नृत्य गोपाल दास महराज ने किया। कथा श्रवण हेतु काफी संख्या में भक्तगण शामिल रहे। मणिराम दास छावनी स्थित योग एवं प्राकृतिक चिकित्सालय के विशाल कथा हाल में आयोजित इस कथा से पूरा क्षेत्र ही गुंजित हो रहा है। नया घाट व वासुदेव घाट क्षेत्र के आसपास में भी माइक लगे होने से लोग अपने घरों व छतों पर भी बैठ कर श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कर अपना जीवन कृतार्थ कर रहे हैं।
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