लालचंद्र मद्धेशिया
धर्मसिंहवा,संतकबीरनगर।धर्मसिंहवा कस्बा कभी गौतम बुद्ध से जुड़ी होने के कारण धर्म की नगरी धम्मसंघ के नाम से जाना जाता था। आज वर्तमान नाम धर्मसिंहवा के नाम से प्रचलित है राजनीतिक उपेक्षाओं के कारण मूल भूत सुविधाएं अन्य गांवों से भी बदतर है। आने-जाने के लिए बनी सड़क जगह जगह टूट कर गड्ढे में तब्दील हो गयी है। जल निकासी के लिए बनी नाली जर्जर हो चुकी है। जर्जर नाली से निकला पानी सड़कों के गड़ढा में ही जमा रहता है। जिससे लोगों को आने जाने में परेशानी का सामना करना पड़ता है।सफाई व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गयी है। लोग चन्दा इकट्ठा करके नाली की साफ सफाई करते हैं।
धर्मसिंहवा चौराहे से थाना, प्राथमिक, जूनियर हाईस्कूल, जनता इंटर कालेज की ओर जाने वाली मार्ग का निर्माण हुए एक माह भी नहीं हुआ कि गिट्टियां उखड़ कर सड़क धंस गई नाली जाम होने के कारण दुर्गन्ध भरी बजबजाती नाली का पानी सड़क पर पसरा है। आस पास के लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। हमेशा भय बना रहता है कि दुर्गन्ध भरी नालियों का पानी कहीं भयावह रूप न लें लें जिसके कारण हम लोग गम्भीर बीमारी के चपेट में न आ जाएं। आशाकर्मी विमला देवी, कृष्णा मोदनवाल, सलमान मनिहार, अली अहमद, जगपति मोदनवाल, प्रमोद जायसवाल, रियाज, धर्मेन्द्र विश्वकर्मा, रघुनाथ अग्रहरी, राजमणि पंडित, शब्बीर, जमीलअहमद, अमीरूद्दीन, साबिर अली, रेहान अंसारी, एकलाख अंसारी, सोनू प्रजापति, पवन मध्देशिया, रमेश कुमार मध्देशिया, हरीश गौड़, अनिल मोदनवाल, रमेश जायसवाल, राकेश त्रिपाठी आदि सभी लोगों का कहना है कि जिम्मेदार लोगों से कई बार शिकायतें की गई लेकिन साफ -सफाई की उचित प्रबंध न होने के कारण तमाम गंदगी से होने वाली बीमारी की समस्याओं को झेलना पड़ रहा है। सफाई कर्मी अपने मन का मालिक है। एक दो महीने में कभी आ भी जाता है, तो अपने मन का जगह-जगह कूड़ा लगा कर चला जाता। एक ही स्थान पर कई दिन तक कूड़ा पड़ा रहने से उससे उठते दुर्गध से संक्रामक रोग फैलने का भय बना रहता है। जिससे सभी कस्बावासियों में सफाईकर्मी के प्रति रोष रहता है।
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