आलोक बर्नवाल
संतकबीरनगर। आला अधिकारी या जन प्रतिनिधि भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने का लाख दावा कर लें, लेकिन यह कहने तक ही सीमित है। विगत दिनों जनपद में पहूचे प्रभारी मंत्री रविंद्र जायसवाल ने भी इस बात को अधिकारियों के साथ हुई बैठक में खुले मंच पर कहा था कि किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ताजुब की बात तो यह है कि उन अधिकारी के लिए डीएम और सीडीओ के आदेश भी कोई मायने नहीं रखते है। मामला सचिवों के बराबर ग्राम पंचायत आंवंटन का है। इस मामले में जमकर खेल खेला जा रहा है। सीडीओ बब्बन उपाध्याय ने कार्यभार ग्रहण करने के बाद तत्काल एक आदेश जारी किया था। जिसमें साफ तौर पर लिखा था कि सभी सचिवों को बराबर ग्राम पंचायतों का आवंटन किया जाएं। इसके बाद सभी विकास खण्डों में खलबली सी मच गई। हालात यह हुए कि जो रसूखदार सेक्रेट्री थे, उन्होंने अपने पैरो के नीचे की जमीन खिसकती देखी तो जुगाड भी लगाना शुरू कर दिया जुगाड सटीक बैठा तो मामला ठंढे बस्ते में चला गया। कुछ दिन बाद वापस सीडीओ ने निर्देश देते हुए अपने आदेश का अनुपालन कराने का निर्देश डीपीआरओ को दिया। ताजुब की बात तो यह है,कि सीडीओ आदेश पर आदेश दिए जा रहे हैं, लेकिन डीपीआरओ उनके आदेश को ठेंगा दिखाते हुए अपनी मनमर्जी से सचिवों को ग्राम पंचायतों का अवंटन करने में लगे हुए हैं। हैंसर ब्लॉक में तों स्थिति यह है कि किसी को 11 ग्राम पंचायत तो किसी को 10, तो किसी को 9, किसी को 8, किसी को 7 ग्राम पंचायत का आवंटन किया गया है। सचिवों को अपने मनमर्जी से ग्राम पंचायत का आवंटन डीपीआरओ द्वारा कर दिया गया है। ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि जब साफ सुथरी छवि के अधिकारी हैं तो बराबर ग्राम पंचायत आवंटन करने में क्या दिक्कत आ रही है.? जब सीडीओ ने आदेश दिया तो उसपर कोई अमल क्यों नही मातहतों द्वारा किया गया.? जो एक बड़ा सवाल बना हुआ है।
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