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राज्यपाल से मुलाकात कर ज्ञापन देने पहुंचे प्रसपा जिलाध्यक्ष को पुलिस ने लिया हिरासत में


प्रदेश में लागू है अघोषित इमरजेंसी : सुरेश शुक्ल
गवर्नर के जाने के बाद छोड़े गए प्रसपा नेताओं ने शासन-प्रशासन पर बोला हमला
ए. आर. उस्मानी
गोण्डा। शुक्रवार को पूर्व निर्धारित महामहिम राज्यपाल के जनपद आगमन पर उनसे मिलकर ज्ञापन देने केे लिए प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के जिलाध्यक्ष को प्रशासन द्वारा शाम 3 बजे का समय दिया गया था। वह अपने साथियों के साथ सर्किट हाउस गोंडा 2 बजे पहुंच गये, जहां मौजूद एलआईयू इंस्पेक्टर और प्रभारी निरीक्षक कोतवाली नगर ने उनसे थोड़ी देर में मुलाकात कराकर ज्ञापन दिलवाने की बात कही और वहां से चले गए। इसके बाद जिलाध्यक्ष समेत अन्य नेताओं को पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया। 
      शुक्रवार को प्रदेश की महामहिम राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का जिले में आगमन का कार्यक्रम तय था। तमाम जनसमस्याओं को लेकर उनसे मिलने के लिए प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के जिलाध्यक्ष सुरेश कुमार शुक्ल ने जिला प्रशासन से समय ले रखा था। कहा गया था कि तीन नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिलेगा, जिसमें जिलाध्यक्ष श्री शुक्ल के साथ ही प्रमुख जिला महासचिव जमाल मोहम्मद चौधरी व मदन मोहन मिश्र का नाम शामिल था। बताया जाता है कि इन्हें जिला प्रशासन द्वारा 3 बजे का समय दिया गया था। करीब 2 बजे उक्त नेतागण सर्किट हाउस पहुंच गए, जहां मौजूद नगर कोतवाल व एलआईयू इंस्पेक्टर ने इन्हें मिलवाने की बात कही और कहीं चले गए। कुछ देर बाद कोतवाल वापस आए प्रसपा जिलाध्यक्ष श्री शुक्ल के साथ ही उनके साथ मौजूद प्रमुख महासचिव जमाल मोहम्मद चौधरी और जिला महासचिव मदन मोहन मिश्रा को हिरासत में लेते हुए जबरन अपनी पुलिस गाड़ी में बैठा कर कोतवाली नगर लेकर चले गए।
    प्रसपा जिलाध्यक्ष सुरेश कुमार शुक्ल ने बताया कि  महामहिम राज्यपाल के चले जाने के पश्चात 3 बजकर 30 मिनट पर उन्हें साथियों के साथ छोड़ दिया गया। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि पूरे प्रदेश में अघोषित इमरजेंसी लागू है। जिला प्रशासन द्वारा समय निश्चित किए जाने के बावजूद महामहिम राज्यपाल को जनसमस्याओं से संबंधित 15 सूत्रीय ज्ञापन जबरन ना देने देना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। श्री शुक्ल ने कहा कि सरकार के साथ ही जिला और पुलिस प्रशासन भी तानाशाही पर उतर आया है। लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है। जनता की समस्याओं को महामहिम राज्यपाल से कहने से रोका गया। इसका मतलब साफ है कि शासन और प्रशासन को जनता की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं रह गया है। यह बहुत ही दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।
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