आलेख:भारत परंपराओं और रीति-रिवाजों का देश है। हिंदू संस्कृति में गर्भधारण से लेकर मरणोपरांत तक कई प्रकार के संस्कारों को निभाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। भारतीय संस्कृति में पूर्वजों को विशेष सम्मान और महत्व दिया जाता है। शास्त्रों में भगवान की पूजा से पहले अपने पितरों को पूज्यनीय बताया गया है। पूर्वजों के प्रति स्नेह, विनम्रता, आदर व श्रद्धा भाव को प्रगट करने और शास्त्रों की मान्यताओं के अनुसार जब तक पितरों का तर्पण नहीं किया जाता, तब तक उन्हें मुक्ति नहीं मिलती है। पितृ ऋण से मुक्ति और आत्माओं की तृप्ति के पितृ पक्ष में अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध किया जाता है।
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार अश्विन माह के कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक अपने पितरों के श्राद्ध की परंपरा है। पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण करना ही पिंडदान करना है। अपने पूर्वजों के प्रति स्नेह, विनम्रता, आदर व श्रद्धा भाव से किया जाने वाला कर्म ही श्राद्ध है। यह पितृ ऋण से मुक्ति पाने का सरल उपाय भी है। इसे पितृ-यज्ञ भी कहा गया है। आजकल बहुत सारे मामलों में पुत्रियों द्वारा भी पिता को मुखाग्नि दी गई है। सवाल उठता है कि जब महिला मुखाग्नि दे सकती है तो तो श्राद्ध क्यों नहीं कर सकती?
शास्त्रों ने महिलाओं को भी मुखाग्नि देने और पिंडदान का अधिकार नहीं दिया है। ऐसा कहीं उल्लेख नहीं मिलता कि महिला पिंडदान/तर्पण नहीं कर सकती है। सिर्फ मासिक धर्म के दौरान पिंडदान या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने की मनाही है। परंपरागत रूप से पुरुष ही श्राद्ध कर्म करते आ रहे हैं। इसलिए भी यह नियम बन गया है कि स्त्रियां श्राद्ध नहीं कर सकतीं। गरुड़ पुराण में उल्लेख मिलता है कि विशेष परिस्थितियों में महिलाएं श्राद्ध कर सकती हैं। गरूड़ पुराण के मुताबिक पति, पिता या कुल में कोई पुरुष सदस्य है, पर वह श्राद्ध कर्म कर पाने की स्थिति में नहीं है तो परिवार की महिला श्राद्ध कर सकती है। यदि घर में कोई वृद्ध महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध कर्म करने का अधिकार उसका होगा। शास्त्रों में कहा गया है कि श्राद्ध पूर्वजों के प्रति समर्पण और श्रद्धा से होता है। इसलिए महिलाएं भी श्राद्ध कर सकतीं हैं। किसी व्यक्ति की केवल कन्या संतान है तो कन्या श्रद्धापूर्वक अपने पितरों का श्राद्ध कर सकती है। कन्या द्वारा किया गया श्राद्ध और पिंड पितृ स्वीकार करते हैं। पुत्र की अनुपस्थिति में बहू भी पिंडदान कर सकती है। इसका उल्लेख बाल्मीकि रामायण में है। सीता जी द्वारा अपने ससुर राजा दशरथ का श्राद्ध और तर्पण कर्म किया गया था। धर्मसिंधु, मनुस्मृति और गरुण पुराण के अनुसार महिलाएं भी श्राद्ध और पिंडदान कर सकती हैं। श्राद्ध और तर्पण का मूल आधार अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान है।
डॉ. रचना सिंह रश्मि
आगरा, यूपी
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