लेख:पर्यावरण की रक्षा के लिए भारत सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत घर घर शौचालय बनवाने की मुहिम चलाई। प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने की कवायदें हुईं। यहां तक कि किसानों द्वारा अपने खेतों में फसलों के अवशेष को जलाये जाने को भी प्रतिबंधित किया गया। सच तो यह है कि इन सभी क्रियाकलापों से कहीं ज्यादा प्रदूषण शवदाह से होता है, जिसके लिए सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है।
देवीपाटन मण्डल सहित तमाम जनपदों के ग्रामीण क्षेत्रों के मध्यम वर्गीय हिन्दू परिवारों में किसी की मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार हेतु भारी भरकम खर्च वहन करने पड़ते हैं। मान्यताओं के मुताबिक़ अयोध्या के आस पास के लोग सरयू घाट पर अंतिम संस्कार के लिए पहुंचते हैं, जहां खुले में दाह संस्कार के बाद परित्यक्त सामग्री सरयू में प्रवाहित की जाती है। सामन्यतः देखा जाय तो जिन परिवारों की आर्थिक स्थितियां कमजोर होती हैं, उन्हें दाह संस्कार के लिए होने वाले खर्च, पारिवारिक सदस्य की मृत्यु से भी अधिक पीड़ा पहुंचाती है। कुछ परिवार तो ऐसे भी पाये गए हैं, जिन्हें पारिवारिक सदस्य के दाह संस्कार के लिए लोगों के आगे हाथ तक फैलाने पड़े हैं। एक तो मृत्यु का दंश, उस पर यह लाचारी और बेबसी देख कर जहां तक मुझे लगता है की इससे बड़ा और कोई संकट जीवन काल में नहीं आता। जीवन बचाने के लिए होने वाले प्रयासों में सभी संसाधन व्यक्ति अपनी क्षमता अनुसार व्यय करता है।
मृत्यु निश्चित है
इस देश में माताओं के गर्भ में पल रहे शिशुओं को पौष्टिकता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उन्हें जननी सुरक्षा योजना से लाभान्वित किया जाता है। उसी प्रकार मृत्यु के बाद उसके दाह संस्कार के लिए भी सरकार को सुरक्षित एवं पर्यावरण के अनुकूल व्यवस्था प्रदान करनी चाहिए। बड़े बड़े महानगरों में अंतिम संस्कार के लिए इलेक्ट्रानिक शवदाह गृह संचालित हैं। सरकार से अपील है की ऐसे इलेक्ट्रिक शवदाह स्थलों का निर्माण प्रत्येक जनपद में करवाने की दिशा में कदम बढ़ाया जाए।
प्रदीप शुक्ल
युवा समाजसेवी, गोण्डा
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