■ 25 किलोमीटर दूर से आकर इलाज के लिए ले गए परिजन
■ प्रधानाचार्य, शिक्षिकाओं के साथ किसी ने भी नहीं ली सुधि
आलोक बर्नवाल
संतकबीरनगर। जिला मुख्यालय से मात्र चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित पं दीन दयाल उपाध्याय आश्रम पद्धति आवासीय बालिका इण्टर कालेज चकदही, खलीलाबाद में सीढ़ी से गिरकर बेहोश हुई एक बालिका इलाज के लिए 5 घण्टे तक तडपती रही। आलम यह रहा कि वहां पर मौजूद प्रधानाचार्य, शिक्षिकाओं व शिक्षणेत्तरकर्मियों में से किसी ने भी उसकी सुधि नहीं ली। बाद में 25 किलोमीटर दूर से उसकी मां ई रिक्शा लेकर आई और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में भर्ती कराया, जहां उसका इलाज चल रहा है।
जनपद के ब्लाक क्षेत्र सेमरियांवा के पचपोखरिया गांव के निवासी चन्द्रेश गौतम की दो बेटियां मनीता 18 वर्ष, हाईस्कूल तथा सुनीता 16 वर्ष कक्षा 9 की छात्राएं हैं। बुधवार की सुबह 8 बजे मनीता अचानक सीढ़ी से गिरकर बेहोश हो गई। उसके सिर में गंभीर चोट आई थी। बेहोशी की हालत में छात्राएं उसको पंखा इत्यादि चलाकर तथा पानी आदि छिड़ककर होश में लाने का प्रयास कर रही थीं। इस दौरान हास्टल में न तो वार्डेन थीं, न ही कोई शिक्षिका या प्रधानाचार्य इसलिए वे अपनी पीड़ा किससे कहतीं। उन्होंने वहां के चपरासी, रसोइया तथा चौकीदार सभी से यह बात बताई लेकिन किसी ने भी कोई सहायता नहीं की। वहां पर टेलीफोन भी नहीं था कि वे एम्बुलेन्स को फोन करके बुलाएं। दो घण्टे बीतने के बाद 10 बजे के करीब वहां की प्रधानाचार्य देवबाला पाण्डेय स्कूल पहुंची। बच्चियों ने उनको यह बात बताई तो उन्होने दो बार एम्बुलेन्स को फोन लगाया, फोन नहीं लगा तो उन्होने खुद ही कोई व्यवस्था करना मुनासिब नहीं समझा, बल्कि लड़की की माता को फोन करके बताया कि उनकी लड़की बेहोश है। आकर उसका इलाज कराएं। बेटी की बेहोशी की बात सुनकर उसकी मां 25 किलोमीटर दूर से किसी तरह से ई रिक्शा बुक करके भागते हुए आई और स्कूल पहुंचकर अपनी बेहोश बड़ी बेटी मनीता को छोटी बेटी सुनीता तथा ई रिक्शा वाले के सहयोग से ई रिक्शे में लिटाया तथा भागती हुई दोपहर 12.45 बजे सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र खलीलाबाद पहुंची। वहां पर तैनात चिकित्सक डॉ रामशिला और फार्मासिस्ट सत्यव्रत तिवारी तकरीबन 10 मिनट के अथक प्रयास के बाद उसे होश में लाये। जब उससे पूछताछ होने लगी तो धीरे धीरे उसे सारी बातें याद आने लगीं। इसके बाद डॉ रामशिला ने उसे वार्ड में भर्ती कर लिया। समाचार लिखे जाने तक उसका इलाज चल रहा है। लेकिन इसके साथ ही तमाम सवाल भी पैदा होते हैं। आखिर मां बाप किसके सहारे अपने बच्चों को आवासीय विद्यालयों में छोड़कर जाएं, इस विद्यालय में 500 छात्राएं आखिर किसके सहारे रहती हैं। एम्बुलेन्स को फोन नहीं मिला तो किसी अन्य वाहन से उसे नहीं ले जाया जा सकता था।
नही पंहुचते तो मर जाती हमारी बेटी - इंद्रावती
मनीता की मां इन्द्रावती देवी के आंसू तो रोके नहीं रुक रहे थे। वे अपनी बच्ची को देखकर जार जार होकर रो रही थीं। वह कह रही थी कि अगर वह समय से मौके पर नहीं पहुंचतीं तो उनकी बेटी उनको हमेशा के लिए छोड़कर चली जाती। उन्होंने बताया कि जब वे बेटी को लेने के लिए स्कूल मे भी पहुंची तो प्रधानाचार्य ने उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। यही नहीं कहा कि लेकर जा रही हो इसका मेडिकल बनवाकर लाना, नहीं तो नाम काट देंगे। वह बताती हैं कि उन्हें इस बात का बहुत बुरा लगा, लेकिन उन्हें अपनी बेटी की जान की चिन्ता थी, इसलिए वह बेटी को लेकर इलाज के लिए चली आईं।
सबसे लगाती रही इलाज की गुहार - सुनीता
मनीता की छोटी बहन सुनीता जो उसी स्कूल में कक्षा 9 की छात्रा है और छात्रावास में ही रहती है, वह बताती है कि जबसे उसकी बड़ी बहन गिरी, तभी से वह सभी से इलाज के लिए गुहार लगाती रही। लेकिन वहां पर रहने वाले गार्ड, भैया लोग, रसोइया आंटी किसी ने भी उसकी बातों को नहीं सुना। न ही सहायता के लिए कोई आगे आया। मैं और मेरी सहेलियां लगातार दीदी के आंख पर पानी मार रहे थे, उसका पैर सहला रहे थे, ताकि उसे होश आ जाए। कभी कभी उसे होश आता था, लेकिन बाद में वह बेहोश हो जाती। मैडम ने भी नहीं सुना, अगर समय पर मेरी मां नहीं पहुंचती तो मेरी बहन नहीं बचती।
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