■ टीबी के मरीज को दवा खिलाने वालों को मिलती है प्रोत्साहन राशि
■ टीबी के मरीजों को हर महीने मिलता है 500 रुपए पोषण भत्ता
आलोक बर्नवाल
संतकबीरनगर। भारत से आगामी 2025 तक टीबी को जड़ से समाप्त करने के उद्देश्य से सरकार के द्वारा विविध योजनाएं चलाई जा रही हैं। इनमें टीबी मरीजों को खोजकर अस्पताल लाने वालों के साथ ही उनको नियमित रुप से दवा खिलाने वालों के लिए भी प्रोत्साहन राशि की व्यवस्था है। एक टीबी मरीज को दवा खिलाने वाले ( डाट्स प्रोवाइडर ) को 1000 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक की प्रोत्साहन राशि दी जाती है। ताकि टीबी के ये मरीज किसी को बोझ न लगें।
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ एस डी ओझा का कहना है कि सरकार की यह मंशा है कि आगामी 2025 तक टीबी को जड़ से समाप्त कर दिया जाए। इसके लिए सरकार निरन्तर प्रयास कर रही है। गांव गांव में डाट्स प्रोवाइडर तथा दूरस्थ क्षेत्रों में सचल सीबीनाट मशीनों की मदद से मरीजों की जांच की जा रही है। टीबी के मरीजों को नियमित तौर पर टीबी की दवा खिलाने के लिए डाट्स प्रोवाइडर रखे गए हैं। इनमें से अधिकतर आशा कार्यकर्ता हैं। लेकिन अगर कोई व्यक्ति टीबी के किसी संभावित मरीज को लाता है, उसके अन्दर टीबी की पुष्टि जांचोपरान्त हो जाती है, तो ऐसे में उस व्यक्ति को 500 रुपए दिए जाएंगे। साथ ही अगर वह अपने मरीज को खुद दवा खिलाना चाहता है तो दवा उसी को उपलब्ध कराई जाएगी। 6 महीने का कोर्स पूरा हो जाने पर मरीज स्वस्थ होता है तो दवा खिलाने वाले व्यक्ति को 1000 रुपए दिए जाएंगे। यही नहीं अगर यह मरीज एमडीआर ( मेडिकल ड्रग रजिस्टेंस ) टीबी से ग्रसित पाया गया तो इसकी दवा 2 साल तक चलेगी तथा मरीज को दवा खिलाने और सूई लगाने वाले को 5000 रुपए सरकार की तरफ से दिए जाएंगे। अगर किसी को अपने घर के आसपास टीबी का कोई संभावित मरीज मिलता है तो वे तुरन्त ही नजदीकी सामुदायिक या प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर ले जाकर उसकी जांच कराएं। साथ ही उसका पंजीकरण भी कराएं। मरीज को अस्पताल तक लाने के एवज में स्वयंसेवी को 500 रुपए प्रदान किए जाएंगे। अगर कोई आशा कार्यकर्ता ऐसा मरीज लाती है तो उसे भी 500 रुपए सरकार के द्वारा दिए जाएंगे। यह एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है, इसमें सभी का सहयोग अपेक्षित है।
क्या होता है डॉट्स प्रोवाइडर
टीबी के जिला कार्यक्रम समन्वयक अमित आनन्द बताते हैं कि डाट्स प्रोवाइडर किसी सरकारी सेवारत को छोड़कर कोई भी व्यक्ति हो सकता है। यह वह व्यक्ति होता है जिसके हाथ में सीधे टीबी की दवा दी जाती है। वह व्यक्ति स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ा, आशा, समाजसेवी, टीबी रोगी के घर का कोई व्यक्ति , टीबी रोगी के गांव का निवासी या फिर नजदीक का कोई व्यक्ति हो सकता है। दवा उसी व्यक्ति के पास रहेगी। वह टीबी रोगी को अपने सामने दवा खिलाएगा और जब तक दवा उसके गले के अन्दर नहीं चली जाती तक तक देखता रहेगा। यह क्रम निरन्तर दवा समाप्त होने तक चलता रहता है। जो भी प्रोत्साहन राशि जिसके लिए तय है, वह सीधे उसके खाते में स्थानान्तरित कर दी जाती है।
टीबी कार्यक्रम में दिया जाने वाला प्रोत्साहन भत्ता
टीबी के मरीज को खोजकर अस्पताल में पंजीकृत कराने वाले व्यक्त्िा को चाहे व स्वास्थ्य विभाग का हो, या फिर आमजन – 500 रुपया
टीबी के मरीज को हर महीने पोषक खाद्य पदार्थों के लिए भत्ता दिया जाता है। इससे वह इम्यूनिटी हाई करने वाले पोषक आहार खाए – 500 रुपया
साधारण टीबी के मरीज को 6 माह दी जाने वाली दवा को समय पर खिलाने वाले डाट्स प्रोवाइडर को 6 महीने बाद मिलने वाली धनराशि – 1000 रुपया
एमडीआर टीबी के मरीज के मरीज को दो साल तक दी जाने वाली दवा खिलाने व इंजेक्शन लगाने वाले को दो साल बाद मिलने वाली धनराशि – 5000 रुपए
मरीजो की सेवा करके मिलती है खुशी
खलीलाबाद ब्लाक क्षेत्र के वारिश अली और राम सिंह दोनों ही आम आदमी हैं। यह टीबी के मरीजों को दवा खिलाते हैं। विभाग ने इनको डाट्स प्रोवाइडर बनाया है। वारिश अली बताते हैं कि टीबी के मरीजों के पास लोग जाना पसन्द नहीं करते हैं। लेकिन अच्छे व्यवहार से उनका रोग कम होता है। उन्होने कई मरीजों को ठीक किया है। वहीं रामसिंह का कहना है कि टीबी के मरीजों को आवश्यक सुरक्षा के साथ अपनापन भी मिलना चाहिए। नहीं तो वे खुद ब खुद मर जाएंगे। उनके पुराने मरीज आज पूरी तरह से स्वस्थ हैं और समाज निर्माण में अपना योगदान दे रहे हैं।
‘‘ क्षय रोग को जड़ से समाप्त करने के लिए सरकार ने 2025 तक की समय सीमा निर्धारित की है। लेकिन अगर जिले के स्वयंसेवी और हर व्यक्ति जागरुक हो जाए तो जिला इससे पहले ही टीबी से मुक्त हो सकता है। इसके लिए आवश्यक अनुदान भी सरकार के द्वारा दिया जाता है। इसलिए सभी से अनुरोध है कि वे जिले को टीबी मुक्त बनाने में स्वास्थ्य विभाग का सहयोग करें।’’
हरगोविंद सिंह
सीएमओ
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