मोहम्मद सुलेमान
मोतीगंज, गोण्डा। माह-ए- मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर यानि हिजरी वर्ष का पहला महीना है, रविवार यानि 1 सितंबर से 1441 हिजरी शुरू है। माह -ए-मुहर्रम को इस्लामी तारीख की सबसे बड़ी दुखद घटना के लिए याद किया जाता है। इसी महीने में यजीद नाम के एक जालिम बादशाह ने नबी-ए-करीम के नेवासे हजरत सैयदना इमाम-ए- हुसैन रजियल्लाहु अन्हु व उनके 72 साथियों को करबला के मैदान में शहीद कर दिया था। हिजरी सन् का आगाज इसी महीने से होता है। मस्जिदों, इमामबाड़ों व हर घरों में 'जिक्रे शोहदा-ए-कर्बला' की मजलिस रविवार से शुरू होगी, जिसका सिलसिला दसवीं मुहर्रम तक जारी रहेगा।
इमामबाड़ा से निकलेगा शाही जुलूस
माह-ए-मुहर्रम में जिले के विभिन्न कस्बों व गांवों से दर्जनों जुलूस निकलेंगे। शिया समुदाय द्वारा मातमी जुलूस निकाला जायेगा। मुस्लिम गांवों से चौथी मुहर्रम से दसवीं मुहर्रम तक रात-दिन जुलूसों का सिलसिला जारी रहता है। क्षेत्र में ताजिया व रौशन चौकी (विभिन्न मस्जिदों के माडल) बनाने का काम शुरू है। मुहर्रम में निकलने वाली गेहूं व लाइन की ताजिया इस बार भी आकर्षण का केंद्र रहेगी।
माह-ए-मुहर्रम पर होने वाले कुछ कार्यक्रम
मरहूम सिब्ते हसन इमामबाड़ा के मर्सिया खाना में रविवार पहली मुहर्रम से 9 मुहर्रम तक बाद नमाज ईशा 'जिक्रे शोहदा-ए-कर्बला' की मजलिस होगी।
शाही जामा मस्जिद अचलपुर वजीरगंज में रविवार से 10 मुहर्रम तक बाद नमाज इशा (रात) 'जिक्रे शोहदा-ए-कर्बला' की मजलिस होगी। शाही जामा मस्जिद गौसिया में रविवार से 10 मुहर्रम तक बाद नमाज मगरिब (शाम) 'जिक्रे शोहदा-ए-कर्बला' की मजलिस होगी। नगवा में मरहूम हाजी बाबा समसुद्दीन कादरी के मजार पर 10 मुहर्रम तक बाद नमाज इशा (रात) 'जिक्रे शोहदा-ए-कर्बला' की महफिल होगी।
सात समंदर पार से आये लोग
ऐतिहासिक मुहर्रम को मनाने के लिए विदेश से सैकड़ों अप्रवासी भारतीय अपनी आमद दर्ज करा चुके हैं। रविवार मुहर्रम की पहली तारीख से मातम और मजलिस का दौर शुरू होगा। मजलिस में नबी-ए-करीम के नवासे कर्बला के शहीदों पर पढ़े जाने वाले नोहा से शहीदों के गम में मातम होता है। अलम के जुलूस में काफी संख्या में शिया सुन्नी सम्प्रदाय के लोग भाग लेने के लिए दूर दराज से ग्रामीण क्षेत्र के लोग आते हैं। हजरत इमाम -ए - हुसैन को चाहने वाले यहां पर मनाए जाने वाले मुहर्रम को छोड़ नहीं पाते हैं और विदेशों से चले आते हैं।
कनाडा, आस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, ईरान, जार्डन, अमरीका, इंडोनेशिया, मलेशिया, बहरीन, जद्दा व कई देशों में रहने वाले भारतीय प्रवासी मुहर्रम में यहां आते हैं। मुहर्रम में कर्बला में हजरत इमाम-ए- हुसैन व उनके कुनबे के लोगों पर यजीदियों के जुल्म ज्यादती और बरबरियत का जिक्र होने पर नोहा पढ़ते समय अपने आंसू रोक नहीं पाते हैं। मुहर्रम की सातवीं की शाम को मेंहदी व ताबूत देखकर अजादार फफक-फफक कर रो पड़ते हैं। आठवीं को रात में जुलूस निकाला जाता है। नवीं को दरगाह हजरत अब्बास के प्रांगण में आग पर मातम कर इमामबाड़ा में ताजिया रखा जाता है। हिंदू व मुस्लिम काफी संख्या में ताजिया रखकर इमाम-ए- हुसैन को याद करते हैं। ताजिया को सुपुर्द-ए-खाक करने के समय लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है। इस जुलूस में दोनों संप्रदाय के लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
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