निन्दा-रस पीना नहीं, निन्दा घातक रोग।
सदा काम में रत रहें, सच्चे ज्ञानी लोग।।
कर्मवीर हैं खींचते, हरदम बड़ी लकीर।
शोक मिटाते जगत का, हरते हैं पर-पीर।।
हाथी आगे बढ़ रहा, भौंक रहे हैं श्वान।
अवरोधों को मेटकर,बनता मनुज महान।।
अंगुलि उठती अन्य पर,निन्दा में बस एक।
मुड़ जाती हैं स्वयं पर,अंगुलि चारों नेक।।
अपने भीतर झाँकिये, अवगुण भरे अनेक।
दुर्गुण होते न्यून जब, हो यश का अभिषेक।।
नफरत से नफरत बढ़े, बढ़े प्यार से प्यार।
ढाई आखर प्रेम का, है जीवन का सार।।
आओ मिल संकल्प लें, सदा करेंगे काम।
निर्विवाद यह मंत्र है, होता इससे नाम।।
डॉ० दयाराम मौर्य 'रत्न'
सृजनाकुटीर, अजीतनगर, प्रतापगढ़
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