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फैज़ाबाद:धूमधाम से मनायी गयी हिन्द केशरी बाबा हरिशंकरदास की पुण्यतिथि


वासुदेव यादव 
अयोध्या। फैज़ाबाद:विश्व प्रसिद्ध रामनगरी की प्रधानतम पीठ श्री हनुमानगढ़ी मल्ल विद्या के लिए सुप्रिद्ध है। इसी कड़ी में कुश्ती के माध्यम से पूरे भारत में श्री हनुमानगढ़ी का नाम रोशन करने वाले बाबा श्री हरिशंकर दास जी महराज की आज बुधवार को प्रथम पुण्यतिथि पर हनुमानगढ़ी में रामनगरी के संत धर्माचार्य शिष्यों आदि ने श्रद्धासुमन अर्पित किए। 
   इसके बाद वृहद भंडारे का आयोजन किया गया। बाबा हरिशंकर दास महराज के पहलवानी वाले कारनामे आज इतिहास बनकर हम लोगों को गौरव प्रदान कर रहे है। सिद्ध पीठ श्री हनुमानगढ़ी के शीर्ष श्रीमंहत परमपूज्य श्री मंहत ज्ञानदास जी महराज कहते है श्री हरिशंकर दास जी महराज को हिन्दकेशरी की उपाधि से नवाजा गया था, और मै भी उनका शागिद था। बल की अधिकता श्री हनुमान जी से ही प्राप्ति होती है। इसलिए पहलवानों के उपासक श्री हनुमान जी ही है, और हनुमान जी की विशेष कृपा होने के कारण बाबा श्री हरिशंकर दास पहलवान एक बार जिसका हाथ पकड़ लेते थे उसको चित करके ही छोड़ते थे। श्री दास जी ने कहा कि अधिकतर पहलवान मांसाहारी होते है, लेकिन श्री हनुमानगढ़ी के पहलवान विश्व के लिए एक अनूठा उदाहरण है जो शाकाहार के बल पर बड़े बड़े मांसाहारी पहलवानों को मिनटों में धूल चटा देते है। जिससे यह सिद्ध होता है कि शाकाहार जीवन का उचित आहार आज भी है।
     बस्ती जिला में पैदा हुए हरिशंकरदास मात्र 10 वर्ष की अवस्था में हनुमान जी की शरण में आ गए थे। कुछ ही वर्षों में कुश्ती के क्षितिज पर हरिशंकरदास का सिक्का चलने लगा। बाबा ने अपने श्रम-समर्पण की छाप छोड़ते हुए जिला केसरी का खिताब जीता। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1965 में उन्होंने प्रदेश केसरी का खिताब जीता। 1970 का दशक बीतते-बीतते वे राष्ट्रीय ख्याति के पहलवान के तौर पर उभरे। उनकी एक कुश्ती देश भर में पहलवानी का डंका बजाने वाले गोरखपुर के रामनारायण पहलवान से रही। उन दिनों युवा हरिशंकरदास उभरते पहलवान थे और रामनारायण खूब प्रतिष्ठित और स्थापित थे। यह कुश्ती मनकापुर के तत्कालीन राजा राघवेंद्र सिंह ने करवाई थी। करीब 10 मिनट तक चले मुकाबले में यह संकेत मिल गया था कि रामनारायण के पास हरिशंकरदास की काट नहीं है और अगले पल यह साबित भी हुआ, जब बाबा ने मुल्तानी मारकर रामनारायण पहलवान को चित कर दिया। मनकापुर राजा ने पुरस्कार स्वरूप बाबा को रत्नजड़ित स्वर्ण हार प्रदान किया और इसी के साथ राष्ट्रीय क्षितिज पर कुश्ती का नया सूरज उगा। उनके शिष्य परमार्थी गौ सन्त सेवी बाबा बलरामदास जी महराज उनके परम्परा का सही तरह से निर्वहन कर रहे है। आज विशाल भंडारे में हजारो साधु संतों महंतो शिष्यों भक्तो ने भंडारा पाया।
   इस दौरान आये सन्त महंत व अन्य लोगो का बाबा बलरामदास जी ने स्वागत सत्कार किया।।

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