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सपा के पूर्व मंत्री व मौजूदा विधायक समेत तीन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू


खुर्शीद खान 
सुलतानपुर। सपा के पूर्व मंत्री व मौजूदा विधायक एवं उनके पीआरओ समेत तीन के खिलाफ नौकरी दिलाने का झांसा देकर लाखों रूपए हड़प लेने के आरोप में अदालत ने संज्ञान लिया है। एसीजेएम चतुर्थ मनीष निगम ने पूर्व मंत्री समेत अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच के लिए लम्भुआ थानाध्यक्ष को आदेशित किया है। 
आगे पढ़ें पूरा मामला

मामला लम्भुआ थाना क्षेत्र के दुबौली-नरेन्द्रपुर गांव से जुड़ा है। जहां के रहने वाले भुक्तभोगी अरूण दूबे ने जौनपुर जिले के मल्हनी से सपा के मौजूदा विधायक व पूर्व मंत्री समेत तीन के खिलाफ  गम्भीर आरोप लगाते हुए एसीजेएम चतुर्थ की अदालत मे अर्जी दी। आरोप के मुताबिक 01 जनवरी 2015 को वह अयोध्या दर्शन के लिए गया था। इसी दौरान उसकी मुलाकात फैजाबाद जिले के भरहुखाता-चौरे बाजार (बीकापुर) निवासी अखिलेश तिवारी व उसके रिश्तेदार आनंद पांडेय से हुई। उन्होंने बताया कि सपा विधायक पारसनाथ यादव जो कि सपा सरकार में मंत्री है, उनके पीआरओ रतनलाल शर्मा निवासी गोधना-जौनपुर ने मंत्री जी से मिलवाया है और अरूण कुमार को क्लर्क पद पर नौकरी दिलाने का सौदा 4.30 लाख रूपए में तय हो गया है। आरोप है कि अरूण ने अपने करीबियों से तीन लाख रूपए उधार लेकर पूर्व मंत्री व उनके पीआरओ को कागजातों के साथ एक कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे के दौरान लंभुआ स्थित सर्किट हाउस में जाकर दे दिया। इसके काफी समय बाद इन लोगों ने उद्यान अधीक्षक जौनपुर के यहां माली पद पर अरूण को साढ़े तीन हजार रूपए की नौकरी दिलवा दी। एक-दो महीने तक उसके खाते में वेतन भी भेजा गया, लेकिन अपने को ठगा महसूस कर अरूण ने जब पूर्व मंत्री व उनके कथित पीआरओ से क्लर्क पद पर नौकरी दिलाने का सौदा तय होने की बात की तो उन्होंने आठ लाख रूपए और देने की डिमांड की। नौकरी पाने की लालच में अरूण ने भी पूर्व मंत्री पारसनाथ का रसूख सत्ता में देखते हुए आठ लाख रूपए भी आरटीजीएस के जरिए उन्हे दे दिए। फिर भी अरूण को काफी दिनों तक क्लर्क की नौकरी नही मिली। अरूण ने जब दबाव बनाना चाहा तो पूर्व मंत्री व उनके करीबी चुनाव आदि का बहाना बताते हुए उसेे कई महीनों तक दौड़ाते रहे। अरूण के मुताबिक 16 सितम्बर 2015 को राष्ट्रीय कृषि आयात-निर्यात परिषद लखनऊ में सहायक विकास अधिकारी पद का नियुक्ति पत्र उसे प्राप्त कराया गया। जिसके बाद उसे अपने माली पद से इस्तीफा देकर व वहां से एनओसी लेकर जौनपुर आने की बात कही गयी। इस्तीफा देने व एनओसी लेने के लिए जब अरूण सम्बंधित अधिकारी के पास गया तो वहां बताया गया कि मंत्री जी के कहने पर तुम्हे वैसे ही रख लिया गया था, तुम्हारी नौकरी लगी ही नही लगी है तो एनओसी किस बात की। इतना कुछ होने के बाद जब अरूण को पता लगा कि उसके साथ धोखा-धड़ी करके पूर्व मंत्री व उसके करीबियों ने 11 लाख रूपए हड़प लिए है तो उसने अपने रूपए वापस मांगे। आरोप के मुताबिक जून 2017 में जब अभियोगी रतनलाल से मिलने गया तो पता लगा कि वह एक धोखा-धड़ी के मामले में छत्तीसगढ़ के जेल मे निरूद्ध है तो वह पूर्व मंत्री के घर गया तो उन्होंने अपने गार्ड से कहकर अपने कमरे में अभियोगी को बंद करवा दिया और शिकायत करने पर जान से मरवा डालने की धमकी दी। इस सम्बंध में धोखा-धड़ी का शिकार हुए अरूण ने मुख्यमंत्री से लेकर अन्य लोगों तक शिकायत की, लेकिन मामला एक प्रभावशाली विधायक से जुड़ा होने के नाते किसी ने कार्यवाही की जहमत नही उठाई। मामला अदालत पहुंचा तो इस सम्बंध में कई तिथियों पर अदालत ने थाने से आख्या मांगी ,लेकिन थाने पर भी पूर्व मंत्री का दबदबा कायम रहा। नतीजतन बार-बार मांगने के बावजूद भी आख्या अदालत भेजी ही नही गयी। यहां तक कि थानाध्यक्ष को भी तलब करने का आदेश दिया गया। फिलहाल मामले में संज्ञान लेते हुए एसीजेएम चतुर्थ मनीष निगम ने पूर्व मंत्री, उनकेे कथित पीआरओ व करीबी अखिलेश तिवारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर तफ्तीश के लिए लंभुआ थानाध्यक्ष को आदेश दिया है।

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