विकास मिश्र
लालगंज / प्रतापगढ़।कोटवाशुकुलपुर में आयोजित रामलीला के चौथे दिन सीता स्वयम्बर का मनोहारी मंचन किया गया..स्वयम्बर मे जब देश.देशान्तर से आये सभी राजा महराजा ओं में से कोई भी शिवधनुष नहीं तोड़ पाता तो महराजजनक को अपनी प्रतीझा पर बड़ा संताप होता है,और जैसे ही वह यह कहते है कि क्या धरती वीरोँ से विहीन हो गयी है.इस पर सभा मे बैठे लक्ष्मण भढक उठते और महराज जनक से कहते है कि जिस भी सभा में रघुवशं कुल कोई भी क्षत्रिय बैठा हो यह शोभा नहीं देता.वह कहते है कि यदि भ ईया राम की आझा हो तो पल भर ही इस धनुष को भंग कर दूं..इस गुरु विश्वामित्र उन्हें शान्त कराते हुए ..और रामजी को आझा देते है कि हे राम शिव जी के धनुष की चाप चढा कर महराज जनक के संताप को हरो..पर रामचन्द्रजी उठते है और शिव जी के धनुष की प्रतंचा चढाते ही धनुष टूट जाता है।
धनुष भंग करने से पहले राम जी शिव धनुष का आदर करते हूए कहते है..हेशिव शंकर के प्यारे प्यारे धनुहा तुमको प्रणाम मेरा करता है राम तेरा..का मंचन बड़ा ही मनोहारी दृश्य होता है।इसके बाद सीता जी से राम विवाह और अयोध्या से बारातियों के आने का मंचन बहुत सुखदायक महसूस होता है।इस बीच शिव धनुष के टूटते ही..परषुराम व लक्ष्मण संवाद,राम परषुराम संवाद के साथ ही,रावण..बाड़ासुर का संवाद का मंचन मझे हुए कलाकारों का दृश्य प्रस्तुत कता है।रावण के रुप मे मुन्ना यादव,परषुराम के रुप मे राजू रजक,राम के रुप मे अनिल तिवारी, विश्वामित्र के रुप में शिवशंकर यादव ने अपनी अलग छाप छोड़ी है।आयोजक आर्दश मिश्रा ने बताया कि बिगत17वर्षों से रामलीला का आयोजन कर रहे है।व्यास गद्दी पर भोजपूरी गायक जे.पी.विश्वकर्मा के सुर लोगों को मंत्रमुग्ध कर देते है।
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ