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एक कविता खाकी का अधिकार......


बर्दीधारी है परेशान खाकी के अधिकार ।
पुलिस बनी फिर भी महान खाकी के अधिकार मे ।।

भुखे प्यासे पडे रहे खाकी के अधिकार मे ।
चौबीस घंटे खडे रहे खाकी के अधिकार मे।।

अधिकारी की चापलूसी खाकी के अधिकार मे ।
सिपाहीयो मे छाई उदासी खाकी के अधिकार मे ।।

ईमानदार की खैर नही खाकी के अधिकार मे ।
वेईमान कोई गैर नही खाकी के अधिकार मे ।।

बंद जेल मे पंडित काजी खाकी के अधिकार मे ।
उनसे चलती सौदेबाजी खाकी के अधिकार मे ।।

कानूनो से खिलता खेल खाकी के अधिकार मे ।
निर्दोषों को मिलती जेल खाकी के अधिकार मे ।।

किसी की सुने न चीख पुकार खाकी के अधिकार मे ।
बाप बनी इनकी सरकार खाकी के अधिकार मे ।।

बोलो कब इंसाफ मिलेगा खाकी के अधिकार से ।
ऐसे न अब काम चलेगा खाकी के अधिकार से ।।

बर्दीधारी सारे रोते खाकी के अधिकार मे ।
चार चार दिन मे सोते खाकी के अधिकार मे ।।

नेता देखे नृत्य क्रिडा खाकी के अधिकार मे ।
कौन सूनेगा इनकी पिडा खाकी के अधिकार मे ।। 

मेने किया है इसपर सोध खाकी के अधिकार मे।
करना होगा तुम्हें विरोध खाकी के अधिकार मे ।।

सडको पर एक साथ मे आओ खाकी के अधिकार मे ।
जमकर उतपात मचाओ खाकी के अधिकार मे।।

बर्दी को कौन करता प्यार खाकी के अधिकार से ।
अब तो हिलादो सरकार खाकी के अधिकार से ।।

नासमझ तो लडता रहेगा खाकी के अधिकार से ।
बर्दी के लिए अडता रहेगा खाकी के अधिकार से ।।


अश्मनी विश्नोई
नासमझ लेखक
 
स्योहारा बिजनौर 

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