चाबुक की मार सी दौड़ाती जरूरतें इस जिन्दगी की ...... कुछ पल सुस्ताने के लिए चुरा भी लूं अगर, तो फिर पड़ती है दौहड़ी मार सिर पर, एक तो छूटे हुए को पकड़ने मे खाओ दुलत्ती, दूसरे वर्तमान में चलती हुई पर पकड़ रखने के लिए बनाये रखो तेजी, चाबुक की मार सी दौड़ाती जरूरतें इस जिन्दगी की......
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