Type Here to Get Search Results !

Bottom Ad

सोच इक पल की




चाबुक की मार सी दौड़ाती

जरूरतें इस जिन्दगी की ......

कुछ पल सुस्ताने के लिए चुरा भी लूं अगर,

तो फिर पड़ती है दौहड़ी मार सिर पर,

एक तो छूटे हुए को पकड़ने मे खाओ दुलत्ती,

दूसरे वर्तमान में चलती हुई पर पकड़ रखने के लिए बनाये रखो तेजी,

चाबुक की मार सी दौड़ाती

जरूरतें इस जिन्दगी की......

                        दिव्या अग्रवाल

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Top Post Ad



 




Below Post Ad

5/vgrid/खबरे