अमरजीत सिंह
फैजाबाद :मुस्लिम धर्म मे कुर्बानी का अर्थ है अपना जान-माल खुदा के नाम कुर्बान कर देना या अपनी सबसे प्यारी चीज का त्याग करना इसी भावनाओं को उजागर करता है मदरसा दारुल उलूम गौसिया कुतुबीया सीवन वाजितपुर के प्रबंधक कारी इफतिखार अहमद ने बताया कि मुस्लिम धर्म का महत्व तेव्हार ईद उल अजहा को बकरीद के नाम से भी जानते हैं यह इस्लामी कैलेंडर का एक महत्वपूर्ण तेव्हार है हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के द्वारा अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी देने के लिए तत्पर हो जाने की याद में ही इस तेव्हार को मनाया जाता है पैगम्बर हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अल्लाह के सबसे करीब माना जाता है जो अल्लाह के सबसे करीब है उन्होंने त्याग और कुर्बानी का जो उदाहरण विश्व के सामने पेश किया वह आद्धितीय हैं हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को लगा की कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती है इसलिए अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी कुर्बानी के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने सामने बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम को जिंदा खड़ा हुआ देखा और उनकी जगह पर दुम्बा कटा पड़ा हुआ था तभी से बकरे और दुम्बा की बलि देने की प्रथा है कुछ जगहों पर लोग ऊटो की भी बलि देते हैं ईद गाह गेरावढा के पेस इमाम सय्याद इकबाल रसूल व सय्याद रिजवान रसूल ने बताया कि कुरबानी में ज्यादातर बकरों व पडवो की कुर्बानी दी जाती है बकरा तंदुरुस्तऔर बगैर किसी ऐब का होना चाहिए जैसे कि खुदा ने बनाया है इसी कुर्बानी और गोश्त को हलाल कहा जाता है इस गोश्त की तीन बराबर हिस्से के जाते हैं एक हिस्सा अपने लिये के लिए एक दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए और तीसरा हिस्सा गरीबों और मिस्कीनों के लिए जिस तरह ईद उल फितर को गरीबों में पैसा दान के रुप में बांटा जाता है उसी तरह बकरीद पर भी गरीबों में गोश्त बांटा जाता है
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