ललिता गोयल.......... कभी खिलौने तोड़ने, कभी होमवर्क न करने, कभी टीवी ज्यादा देर तक देखने, कभी सुबह जल्दी न उठने को लेकर हर बच्चे को कभी न कभी बचपन में अवश्य मार पड़ी होगी. जब बच्चे पेरेंट्स के अनुसार काम नहीं करते तो पेरेंट्स को गुस्सा आता है और गुस्से में वे पहले वे बच्चों को डराते धमकाते हैं और जब ऐसा करने से बात बनती नहीं दिखती तो वे बच्चों पर हाथ उठा देते हैं. पेरेंट्स ऐसा करते समय सोचते हैं कि वे ऐसा बच्चों की भलाई के लिये कर रहे हैं, उन्हें सुधारने के लिए कर रहे हैं. पर क्या बच्चों पर हाथ उठाना सच में बच्चों की भलाई के लिए होता है आइये जानते हैं - हाथ उठाने के पीछे कारण साइकोलॉजिस्ट प्रांजलि मल्होत्रा के अनुसार “पैरेंट्स को लगता है कि बच्चों को मारना बच्चों को सिखाने समझाने का तरीका है, मारने से वे समझ जाएंगे और दोबारा वही गलती नहीं करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं है. कई बार तो बच्चे ये भी नहीं समझ पाते कि उन्हें मार क्यों पड़ी कई बार बच्चे अकारण भी मार खा जाते हैं. कई जानकारों और मनोचिकित्सकों का कहना है कि बच्चों पर हाथ उठाने से ना सिर्फ उन्हें शारीरिक रूप से चोट पहुंचती है बल्कि वे मानसिक रूप से भी कमजोर पड़ जाते हैं. कई मामलों में बच्चों पर हाथ ना उठाकर यदि प्यार से समझाया जाए तो उन पर सकारात्मक प्रभाव होता है. शारीरिक हिंसा बच्चों को गलत रास्ता दिखाती है. साथ ही बच्चे यह समझ बैठते हैं कि सभी समस्याओं का हल केवल एक हाथ उठाने से हो सकता है. वे अपने आस पास दोस्तों के साथ भी मार पीट का रवैया अपनाने लगते हैं.” हाउसवाइफ ज्यादा उठाती हैं हाथ मुंबई के एक एजूकेशन ग्रुप पोद्दार इंस्टिट्यूट ऑफ एज्युकेशन द्वारा देश के 10 शहरों में किये गए एक सर्वे के अनुसार घर में रहनेवाली मांएं बच्चों बच्चों पर अधिक हाथ उठाती हैं. हैरानी की बात ये है कि 77 प्रतिशत मामलों में मां ही बच्चों को पीटती हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि कामकाजी महिलाओं के पास बच्चों के लिए बहुत कम समय होता है इसलिए वे कम हाथ उठाती हैं जबकि हाउसवाइफ बच्चों के साथ ज़्यादा समय बिताती हैं इसलिए उनकी गलतियों को लेकर वे ज्यादा सख़्त होती हैं. रिश्ते में आ सकती हैं दूरियां बच्चों को मार खाना न केवल अपमानित लगता है बल्कि मार उन्हें अशांत या डरपोक बना सकती है. बात-बात पर हाथ उठाने से जहां कुछ बच्चे अग्रेसिव हो जाते हैं वहीं कुछ बच्चे हर समय डरे सहमे रहने लगते हैं. वे किसी से बात करने से भी कतराने लगते हैं. बड़े होने पर ये सारी समस्याएं उनके विकास में बाधक बन सकती हैं. बार-बार मारने से बच्चों में पैरेंट्स का डर खत्म हो जाता है और कई बार ऐसा करने से बच्चे अपने पेरेंट्स से नफरत भी करने लगते हैं और हो सकता है आपका यह व्यवहार आपके और उनके रिश्ते में दूरियां भी ला दे.
मार से नहीं सुधरते बच्चे
अगस्त 05, 2017
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ललिता गोयल.......... कभी खिलौने तोड़ने, कभी होमवर्क न करने, कभी टीवी ज्यादा देर तक देखने, कभी सुबह जल्दी न उठने को लेकर हर बच्चे को कभी न कभी बचपन में अवश्य मार पड़ी होगी. जब बच्चे पेरेंट्स के अनुसार काम नहीं करते तो पेरेंट्स को गुस्सा आता है और गुस्से में वे पहले वे बच्चों को डराते धमकाते हैं और जब ऐसा करने से बात बनती नहीं दिखती तो वे बच्चों पर हाथ उठा देते हैं. पेरेंट्स ऐसा करते समय सोचते हैं कि वे ऐसा बच्चों की भलाई के लिये कर रहे हैं, उन्हें सुधारने के लिए कर रहे हैं. पर क्या बच्चों पर हाथ उठाना सच में बच्चों की भलाई के लिए होता है आइये जानते हैं - हाथ उठाने के पीछे कारण साइकोलॉजिस्ट प्रांजलि मल्होत्रा के अनुसार “पैरेंट्स को लगता है कि बच्चों को मारना बच्चों को सिखाने समझाने का तरीका है, मारने से वे समझ जाएंगे और दोबारा वही गलती नहीं करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं है. कई बार तो बच्चे ये भी नहीं समझ पाते कि उन्हें मार क्यों पड़ी कई बार बच्चे अकारण भी मार खा जाते हैं. कई जानकारों और मनोचिकित्सकों का कहना है कि बच्चों पर हाथ उठाने से ना सिर्फ उन्हें शारीरिक रूप से चोट पहुंचती है बल्कि वे मानसिक रूप से भी कमजोर पड़ जाते हैं. कई मामलों में बच्चों पर हाथ ना उठाकर यदि प्यार से समझाया जाए तो उन पर सकारात्मक प्रभाव होता है. शारीरिक हिंसा बच्चों को गलत रास्ता दिखाती है. साथ ही बच्चे यह समझ बैठते हैं कि सभी समस्याओं का हल केवल एक हाथ उठाने से हो सकता है. वे अपने आस पास दोस्तों के साथ भी मार पीट का रवैया अपनाने लगते हैं.” हाउसवाइफ ज्यादा उठाती हैं हाथ मुंबई के एक एजूकेशन ग्रुप पोद्दार इंस्टिट्यूट ऑफ एज्युकेशन द्वारा देश के 10 शहरों में किये गए एक सर्वे के अनुसार घर में रहनेवाली मांएं बच्चों बच्चों पर अधिक हाथ उठाती हैं. हैरानी की बात ये है कि 77 प्रतिशत मामलों में मां ही बच्चों को पीटती हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि कामकाजी महिलाओं के पास बच्चों के लिए बहुत कम समय होता है इसलिए वे कम हाथ उठाती हैं जबकि हाउसवाइफ बच्चों के साथ ज़्यादा समय बिताती हैं इसलिए उनकी गलतियों को लेकर वे ज्यादा सख़्त होती हैं. रिश्ते में आ सकती हैं दूरियां बच्चों को मार खाना न केवल अपमानित लगता है बल्कि मार उन्हें अशांत या डरपोक बना सकती है. बात-बात पर हाथ उठाने से जहां कुछ बच्चे अग्रेसिव हो जाते हैं वहीं कुछ बच्चे हर समय डरे सहमे रहने लगते हैं. वे किसी से बात करने से भी कतराने लगते हैं. बड़े होने पर ये सारी समस्याएं उनके विकास में बाधक बन सकती हैं. बार-बार मारने से बच्चों में पैरेंट्स का डर खत्म हो जाता है और कई बार ऐसा करने से बच्चे अपने पेरेंट्स से नफरत भी करने लगते हैं और हो सकता है आपका यह व्यवहार आपके और उनके रिश्ते में दूरियां भी ला दे.
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