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बेटा हो तो डाक्टर डा.आशुतोष जैसा: लावारिस मां का किया अंतिम संस्कार, 26 दिनों तक की थी सेवा




खुर्शीद खान 
सुलतानपुर. वैसे तो संसार में बहुत सारे रिश्तें हैं, मां-बेटे, बहन-भाई, पति-पत्नी ऐसे तमाम रिश्तें हैं जिन्हें समाज के अंदर खासा मुकाम हासिल है। कभी-कभी इन रिश्तों में खटास भी आ जाती है, और कभी इन रिश्तों के बीच ऐसी आग भड़कती है जो रिश्तों को कलंकित कर जाती है। लेकिन इन सब रिश्तों के ऊपर एक रिश्ता मानवता का है जो कि तमाम तर रिश्तों पर भारी है। ज़िले के एक निजी नर्सिंग होम में कार्यरत डा. आशुतोष श्रीवास्तव यही रिश्ता घर कर गया है। यही वजह है कि एक लावारिस मां की निस्वार्थ भाव से उन्होंने 26 दिनों तक सेवा किया और जब उस मां ने दम तोड़ दिया तो बेटे का फ़र्ज़ निभाते हुए उस मां का अंतिम संस्कार किया। 

निजी नर्सिंग होम में प्रैक्टिस करते हैं डा. आशुतोष
गौरतलब रहे कि डा. आशुतोष शहर के एक निजी नर्सिंग होम में प्रैक्टिस करते हैं। इसके साथ ही उन्हें समाज सेवा का शौक है। अक्सर करके के शाम-सुबह वो शहर के प्रमुख चौराहों और जिला अस्पताल में इस खोज ख़बर के लिए पहुंच जाते हैं के कोई लाचार-मजबूर सड़क पर भूख और दर्द से कराह तो नहीं रहा। ऐसे में अब लोग किसी लावारिस को परेशा हाल देख उन्हें सूचित भी करने लगे हैं।

टूटा था हाथ, पैर के घाव में पड़े थे कीडे
22 जुलाई की बात है सुबह डा. आशुतोष के पास जिला अस्पताल से एक काल आई कि एक 90 वर्षीय लावारिस वृद्धा यहां पड़ी है। सारे काम-काज छोड़ उन्होंने स्कूटी स्टार्ट किया और अस्पताल पहुँच गए। आशुतोष बताते हैं कि बूढ़ी मां का दाहिना हाथ टूटा हुआ था, पैर पर पट्टी बंधी थी उसे खोला गया तो उसमें गम्भीर घाव बन चुका था जिसमें कीडे पड़े थे। वो बताते हैं कि सबसे पहले उन्हें नहलाया धुलाया गया फिर उनका इलाज शुरु कराया।

हर दो दिन पर नहला-धुलाकर करते थे साफ
डा. आशुतोष बताते हैं कि उस मां की पहचान के लिए उन्होंने अस्पताल का रजिस्टर चेक कराया तो पता चला उनका नाम सुखराजी है जो मुसाफिरखाना के दादरा की रहने वाली है। डा. ने बताया कि गाँव के प्रधान से बातचीत की गई तो उसने एक दिन का समय मांगा। लेकिन दूसरे दिन उसने बताया कि उसके गाँव में ऐसी कोई वृद्धा नहीं है। फिर क्या था हर दो दिन पर आशुतोष अपने किसी न किसी साथी के साथ आते मां को नहलाते धुलाते और कुछ खिला पिलाकर चले जाते।

17 अगस्त को मां ने तोड़ा दम
इसी तरह दिन गुज़रता गया, मां  सुखराजी की हालत में कुछ सुधार भी आया, लेकिन एकाएक 17 अगस्त को उस मां ने दम तोड़ दिया। इसकी ख़बर जैसे ही आशुतोष और उनके साथियों को लगी तो सभी की आँखों में आंसू आ गए। खैर 18 अगस्त तक लाश मर्चरी में रही और 19 अगस्त को लाश का पोस्टमार्टम हुआ। इधर आशुतोष ने जिला प्रशासन और पुलिस से लाश का अंतिम संस्कार करने की इजाज़त मांगा। इजाज़त मिलने के बाद देर शाम शहर के हथियानाला स्थित श्मशान घाट पर साथियों के साथ उन्होंने मां का नम आँखों के साथ अंतिम संस्कार किया।

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