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मानवता का धर्म निभाओ.....


है पड़ोस में भूखा कोई
रुको अभी मन्दिर मत जाओ।
पूजा करने से भी पहले
मानवता का धर्म निभाओ।।
सिसक रहा है छोटा बच्चा
नहीं पेट में उसके दाना।
पीड़ित हैं माँ-बाप क्षुधा से
दो भोजन उनको फिर खाना।।
फटेहाल बैठा है बूढ़ा
थर-थर देखो काँप रहा है।
दे कोई रोटी का टुकड़ा
उम्मीदों में झाँक रहा है।।
इस लँगड़े को घर पहुँचा दो
तब नमाज मस्जिद में पढ़ना।
गिरे हुओं की करके खिदमत
नवसमाज सुखमय तुम गढ़ना।।
मात-पिता-दु:खियों की सेवा
भजन-कीर्तन से भी श्रेष्ठ।
राह दिखाता है जो जग को
बनता है वह लघु से ज्येष्ठ।।
अश्रु पोंछ लो जो रोते हैं
लाओ चेहरे पर मुस्कान।
यही शिवाला-गुरुद्वारा है
चर्च यही है मोहक तान।।
डॉ० दयाराम मौर्य 'रत्न'
सृजनाकुटीर, अजीतनगर, प्रतापगढ़

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